जी हाँ! भारत में दुनिया की सबसे अच्छी शिक्षा व्यवस्था की जा सकती है। आज हम ऐसी ही बातों की बात करेंगे।
ये कुछ बातें हैं जो कि भारत की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने में हमारी मदद कर सकती हैं और भारत को भी हम दुनिया में अलग पहचान दे सकते हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि प्रयोगों के द्वारा नए प्रकारितियों को अपनाया जाना चाहिए। जो भी नई चीजें या नए नोट आते हैं उसकी जानकारी जल्दी से जल्दी दी जानी चाहिए। यदि हम भारत कि बात करते हैं तो भारत की शिक्षा व्यवस्था बिलकुल नोकिया 3310 के सामान है जो वर्षों बाद भी अपडेट नहीं देती है और छात्र इससे अनजान वहीँ पुराने वर्जन इस्तेमाल में ला रहा है जबकि दुनिया एंड्रॉइड 10 पर आ गयी है। भारत कि पुरानी और नई शिक्षा व्यवस्था में कोई बहुत बड़ा अंतर देखने को नहीं मिलता है।
भारत में शिक्षा आज के समय में एक बहुत बड़ा व्यवसाय है जो कि छात्रों से पैसे लेकर उनकी काबिलियत दूसरों को दिखाने के लिए सिर्फ एक कागज का एक टुकड़ा ही देता है। जबकि शिक्षा का मतलब शिक्षा ही हो चाहिए और यहाँ पर बच्चों को कागज के टुकड़ों देने की जगह कौशल, और वह ज्ञान देने में विश्वास होना चाहिए जो कि उसके भविष्य में काम आये जिसको छात्र खुद सिद्ध कर सके।
मेरा मानना है कि कोई भी बच्चा 7 साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू करना चाहिये, इससे वह अपना बचपन अच्छी तरह पायेगा और जब पढाई करने जाएगा तो वह मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होगा । जबकि भारत के बारे में क्या कहना यहां पर बच्चे के पैदा होते ही तय हो जाता है वह डॉक्टर, इंजीनियर बनेगा और बच्चे 4 या 5 साल के होते ही स्कूल जाने लगते हैं। बच्चे का अभी मानसिक विकास नहीं हुआ है और आप पढाई का बोझ उस पर डाल रहे हैं।
भारत में सरकारी नौकरी के लिए पागलपन है। सरकार कि सभी सेवा जैसे स्कूल, अस्पताल, हॉस्टल से लोग दूर रहना चाहते हैं लेकिन सरकारी नौकरी कोई भी हो उसे करना चाहते हैं। क्योंकि सरकारी नौकरी के लिए आयु तय होने के कारण सभी अपने बच्चों को कम उम्र से तैयार करते हैं।
लिथुआनियाई में सिर्फ 4 घंटे ही पढ़ाया जाता है और कोई होमवर्क नही दिया जाता है। और हर शैट की पढाई के बाद 15 मिनिट का ब्रेक और बीच में 75 मिनट का ब्रेक दिया जाता है। जबकि भारत में 5 घंटे पढ़ाया जाता है जिसमें कुछ ज्यादा अंतर नहीं है लेकिन भारत में ज्यादातर छात्र 2 घंटे की कोचिंग और उसके बाद भी टीचर उन्हें 3 घंटे सेल्फ स्टडी करने के लिए कहते हैं। इसका मतलब है कि 9 से 10 घंटे पढाई करनी पड़ती है।
हमे शिक्षा को डिजिटल रूप से देना चाहिए और वह भी मुफ्त। जबकि भारत में आज भी वहीँ पुरानी पद्धति है और जहाँ ऐंसी शिक्षा दी जाती है वहाँ वहाँ की हालत तो आप जानते ही है।
कमजोर छात्रों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि वे एवारेज बच्चों जितने लेवल में आ सके। अगर ज़रूरत हो तो उन्हें विशेष श्रेणियों में भी भेजा जाना चाहिए । जबकि भारत में अच्छे अंक लाने वाले छात्र पर और अधिक ध्यान दिया जाता है। जो पीछे की बेंच पर बैठे हो उनसे ज्यादातर शिक्षको को कोई मतलब नहीं होता है । पिछड़ा और पिछड़ जाता है।
हमें थ्योरी से अधिक प्रैक्टिकल पर ध्यान देना चाहिए और भारत में प्रैक्टिकल के नाम थ्योरी ही पूँछी जाती है। प्रैक्टिकल लैब के बारे में तो कुछ मत पूछो ।
उदाहरण के लिए हम बता रहे हैं कि फ़िनलैंड की शिक्षा व्यवस्था में परीक्षा नहीं ली जाती है। इसीलिए विद्यार्थी परीक्षा का तनाव झेलने के बजाय सीखने में ध्यान लगा पाते हैं। 9 साल की प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद जब छात्र 16 साल का हो जाता है तब ही उसे एक बार राष्ट्रिय स्तर की परीक्षा देनी पड़ती है। आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए ये परीक्षा पास करना जरुरी होता है।
अगर भारत में भी इन चीजों पर ध्यान दिया जाए तो बच्चों की ज़िंदगी बदल सकती है और इसी प्रकार हम भारत को दुनिया की सबसे अच्छी शिक्षा व्यवस्था वाला देश बना सकते है।
लिथुआनियाई में सिर्फ 4 घंटे ही पढ़ाया जाता है और कोई होमवर्क नही दिया जाता है। और हर शैट की पढाई के बाद 15 मिनिट का ब्रेक और बीच में 75 मिनट का ब्रेक दिया जाता है। जबकि भारत में 5 घंटे पढ़ाया जाता है जिसमें कुछ ज्यादा अंतर नहीं है लेकिन भारत में ज्यादातर छात्र 2 घंटे की कोचिंग और उसके बाद भी टीचर उन्हें 3 घंटे सेल्फ स्टडी करने के लिए कहते हैं। इसका मतलब है कि 9 से 10 घंटे पढाई करनी पड़ती है।
हमे शिक्षा को डिजिटल रूप से देना चाहिए और वह भी मुफ्त। जबकि भारत में आज भी वहीँ पुरानी पद्धति है और जहाँ ऐंसी शिक्षा दी जाती है वहाँ वहाँ की हालत तो आप जानते ही है।
कमजोर छात्रों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि वे एवारेज बच्चों जितने लेवल में आ सके। अगर ज़रूरत हो तो उन्हें विशेष श्रेणियों में भी भेजा जाना चाहिए । जबकि भारत में अच्छे अंक लाने वाले छात्र पर और अधिक ध्यान दिया जाता है। जो पीछे की बेंच पर बैठे हो उनसे ज्यादातर शिक्षको को कोई मतलब नहीं होता है । पिछड़ा और पिछड़ जाता है।
हमें थ्योरी से अधिक प्रैक्टिकल पर ध्यान देना चाहिए और भारत में प्रैक्टिकल के नाम थ्योरी ही पूँछी जाती है। प्रैक्टिकल लैब के बारे में तो कुछ मत पूछो ।
उदाहरण के लिए हम बता रहे हैं कि फ़िनलैंड की शिक्षा व्यवस्था में परीक्षा नहीं ली जाती है। इसीलिए विद्यार्थी परीक्षा का तनाव झेलने के बजाय सीखने में ध्यान लगा पाते हैं। 9 साल की प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद जब छात्र 16 साल का हो जाता है तब ही उसे एक बार राष्ट्रिय स्तर की परीक्षा देनी पड़ती है। आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए ये परीक्षा पास करना जरुरी होता है।
अगर भारत में भी इन चीजों पर ध्यान दिया जाए तो बच्चों की ज़िंदगी बदल सकती है और इसी प्रकार हम भारत को दुनिया की सबसे अच्छी शिक्षा व्यवस्था वाला देश बना सकते है।