डॉ. अंबेडकर जयंती या भीम जयंती डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर के जन्म दिन 14 अप्रैल को तौहार के रूप में भारत समेत पूरे संसार में मनाया जाता है।
इस दिन को 'समानता दिवस' और 'ज्ञान दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकी जीवन भर समानता के लिए संघर्ष करने वाले आंबेडकर को समानता के प्रतीक और ज्ञान के प्रतीक माना जाता है।
डॉ. आंबेडकर विश्व भर में उनके मानवाधिकार आंदोलन, संविधान निर्माण और उनकी प्रकांड विद्वता के लिए जाने जाते हैं और यह दिवस उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।
आंबेडकर की पहली जयंती सदाशिव रणपिसे ने 14 अप्रेल 1928 में पुणे शहर में मनाई थी। रणपिसे आंबेडकर के अनुयायी थे। उन्होंने आंबेडकर जयंती की प्रथा शुरू की ।
डॉ. आंबेडकर के जन्मदिन पर हर साल उनके लाखों अनुयायी उनके जन्मस्थल भीम जन्मभूमि महू (मध्य प्रदेश), बौद्ध धम्म दीक्षास्थल दीक्षाभूमि, नागपुर, उनका समाधी स्थल चैत्य भूमि, मुंबई जैसे कई स्थानिय जगहों पर उन्हें अभिवादन करने लिए इकट्टा होते है।
सरकारी दफ्तरों और भारत के बौद्ध विहारों में भी आंबेडकर की जयंती मनाकर उन्हें नमन किया जाता है। विश्व के 100 से अधिक देशों में आंबेडकर जयंती मनाई जाती है।
आंबेडकर, किंग और मंडेला ये तीनों लोग अपने अपने देश में मानवाधिकार संघर्ष के सबसे बडे नेता के रुप में जाने जाते हैं।
Dr. Ambedkar Jayanti 2022
आंबेडकर के योगदान को याद करने के लिये 14 अप्रैल को एक उत्सव से कहीं ज्यादा उत्साह के साथ लोगों के द्वारा आंबेडकर जयंती को मनाया जाता है। इस दिन उनके स्मरणों को अभिवादन किया जाता हैं।
जयंती के दिन भारत के कई राज्यों में सार्वजनिक अवकाश के रूप में घोषित किया जाता हैं। नयी दिल्ली, संसद में उनकी मूर्ति पर हर वर्ष भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, अन्य राजनैतिक पार्टियों के नेताओं, तथा आम लोगो द्वारा एक अभिवादन किया गया। बौद्ध एवं हिंदू दलित लोग अपने घरों में उनकी प्रतिमा को अभिवादन करते हैं।
सार्वजनिक लगी आंबेडकर मुर्तियों पर लोग उन्हे पुष्पमाला पहनाकर सन्मान देते हैं, उनकी मूर्ति को सामने रख लोग परेड करते हैं, ढोल बजाकर नृत्य का भी आनन्द लेते हैं।
पूरे भारत भर में गावं, नगर तथा छोटे-बड़े शहरों में जुनून के साथ आंबेडकर जयंती मनायी जाती है। महाराष्ट्र में आंबेडकर जयंती बडे पैमाने पर मनाई जाती है।
आंबेडकर के जन्मदिवस उत्सव के लिये विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते है, जिसमें चित्रकारी, सामान्य ज्ञान प्रश्न-उत्तर प्रतियोगिता, चर्चा, नृत्य, निबंध लेखन, परिचर्चा, खेल प्रतियोगिता और नाटक जिसके लिये पास के स्कूलों के विद्यार्थीयों सहित कई लोग भाग लेते हैं। इस उत्सव को मनाने के लिये सेमीनार आयोजित किये जाते है।
आंबेडकर जयंती संपूर्ण विश्व में मनाई जाती हैं। अधिकांश रूप से आंबेडकर जयंती भारत में मनाई जाती है, भारत के हर राज्य में, राज्य के हर जिले में और जिले के लाखों गावों में मनाई जाती हैं।
भारतीय समाज, लोकतंत्र, राजनिती एवं संस्कृती पर आंबेडकर का गहरा प्रभाव पड़ा हैं। सौ से अधिक देशों में हर वर्ष डॉ॰ आंबेडकर जी की जयंती मनाई जाती हैं।
Corona lockdown में बाबा साहब डा.भीमराव आम्बेडकर की जयंती कैसे मनाये
विश्व रत्न बाबा साहब डा.भीमराव आम्बेडकर की जयंती पर इस बार न कोई शोभायात्रा निकाले और ना ही कोई अन्य सार्वजनिक समारोह करें।
कोरोना वायरस संकट से उपजे लाकडाउन का पूरी तरह पालन करते हुए सभी लोग इस बार बाबा साहब की जयंती घरों में ही मनाए ।
इस अवसर पर बाबा साहब के समर्थक घरों में दीपक जलाएं, परिवार के बीच इंटरनेट की मदद से मोबाइल व लैपटाप आदि पर बाबा साहब के जीवन पर बनी फिल्में व गीत-संगीत के कार्यक्रम देखे। सोशल डिस्टेंसिंग का पूरी तरह अनुपालन करते हुए जरूरतमंदों की मदद करें।
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने भी देशवासियों से इस बार बाबा साहब की जयंती घरों में मनाए जाने की अपील की है।
बाबा साहेब से जुड़ी ये 7 बातें
1. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था। हालांकि उनका परिवार मराठी था और मूल रूप से महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के आंबडवे गांव से था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और मां भीमाबाई थीं। अंबेडकर महार जाति के थे। इस जाति के लोगों को समाज में अछूत माना जाता था और उनके साथ भेदभाव किया जाता था। अंबेडकर बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे लेकिन जातीय छुआछूत की वजह से उन्हें प्रारंभिक शिक्षा लेने में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। स्कूल में उनका उपनाम उनके गांव के नाम के आधार पर आंबडवेकर लिखवाया गया था। स्कूल के एक टीचर को भीमराव से बड़ा लगाव था और उन्होंने उनके उपनाम आंबडवेकर को सरल करते हुए उसे अंबेडकर कर दिया।
2. भीमराव अंबेडकर मुंबई की एल्फिंस्टन रोड पर स्थित गवर्नमेंट स्कूल के पहले अछूत छात्र बने। 1913 में अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए भीमराव का चयन किया गया, जहां से उन्होंने राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएशन किया। 1916 में उन्हें एक शोध के लिए पीएचडी से सम्मानित किया गया। अंबेडकर लंदन से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट करना चाहते थे लेकिन स्कॉलरशिप खत्म हो जाने की वजह से उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़कर वापस भारत आना पड़ा। इसके बाद वे कभी ट्यूटर बने तो कभी कंसल्टिंग का काम शुरू किया लेकिन सामाजिक भेदभाव की वजह से उन्हें सफलता नहीं मिली। फिर वे मुंबई के सिडनेम कॉलेज में प्रोफेसर नियुक्त हो गए। 1923 में उन्होंने 'The Problem of the Rupee' नाम से अपना शोध पूरा किया और लंदन यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टर्स ऑफ साइंस की उपाधि दी। 1927 में कोलंबंनिया यूनिवर्सिटी ने भी उन्हें पीएचडी दी।
3. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर समाज में दलित वर्ग को समानता दिलाने के जीवन भर संघर्ष करते रहे। उन्होंने दलित समुदाय के लिए एक ऐसी अलग राजनैतिक पहचान की वकालत की जिसमें कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों का ही कोई दखल ना हो। 1932 में ब्रिटिश सरकार ने अंबेडकर की पृथक निर्वाचिका के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, लेकिन इसके विरोध में महात्मा गांधी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। इसके बाद अंबेडकर ने अपनी मांग वापस ले ली। बदले में दलित समुदाय को सीटों में आरक्षण और मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार देने के साथ ही छुआ-छूत खत्म करने की बात मान ली गई।
4. अंबेडकर ने 1936 में स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की। इस पार्टी ने 1937 में केंद्रीय विधानसभा चुनावों मे 15 सीटें जीती। महात्मा गांधी दलित समुदाय को हरिजन कहकर बुलाते थे, लेकिन अंबेडकर ने इस बात की खूब आलोचना की। 1941 और 1945 के बीच उन्होंने कई विवादित किताबें लिखीं जिनमें 'थॉट्स ऑन पाकिस्तान' और 'वॉट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स' भी शामिल हैं।
5. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर प्रकांड विद्वान थे। तभी तो अपने विवादास्पद विचारों और कांग्रेस व महात्मा गांधी की आलोचना के बावजूद उन्हें स्वतंत्र भारत का पहला कानून मंत्री बनाया गया। इतना ही नहीं 29 अगस्त 1947 को अंबेडकर को भारत के संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। बाबासाहेब अंबेडकर ने 1952 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वो हार गए। मार्च 1952 में उन्हें राज्य सभा के लिए नियुक्त किया गया और फिर अपनी मृत्यु तक वो इस सदन के सदस्य रहे।
6. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया। इस समारोह में उन्होंने श्रीलंका के महान बौद्ध भिक्षुमहत्थवीर चंद्रमणी से पारंपरिक तरीके से त्रिरत्न और पंचशील को अपनाते हुए बौद्ध धर्म को अपना लिया। अंबेडकर ने 1956 में अपनी आखिरी किताब बौद्ध धर्म पर लिखी जिसका नाम था 'द बुद्ध एंड हिज़ धम्म'। यह किताब उनकी मृत्यु के बाद 1957 में प्रकाशित हुई।
7. डॉक्टर अंबेडकर को डायबिटीज थी। अपनी आखिरी किताब 'द बुद्ध एंड हिज़ धम्म' को पूरा करने के तीन दिन बाद 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार मुंबई में बौद्ध रीति-रिवाज के साथ हुआ। उनके अंतिम संस्कार के समय उन्हें साक्षी मानकर करीब 10 लाख समर्थकों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
7. डॉक्टर अंबेडकर को डायबिटीज थी। अपनी आखिरी किताब 'द बुद्ध एंड हिज़ धम्म' को पूरा करने के तीन दिन बाद 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार मुंबई में बौद्ध रीति-रिवाज के साथ हुआ। उनके अंतिम संस्कार के समय उन्हें साक्षी मानकर करीब 10 लाख समर्थकों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
अंबेडकर के द्वारा कहे गए कथन
“प्रगति की मात्रा के द्वारा ही एक समुदाय की प्रगति को मैं मापता हूँ जिसे महिलाओं ने प्राप्त किया है”।
“ज्ञान एक पुरुष के जीवन की जड़ है”।
“सामाजिक नीतिशास्त्र पर आधारित सामाजिक आदर्शों के द्वारा लोग और उनके धर्म को आँकना चाहिये। किसी भी दूसरे आदर्श का कोई मतलब नहीं होगा अगर लोगों के भले के लिये जरुरी अच्छाई धर्म आयोजित होता है”।
“हर पुरुष जो चक्की के सिद्धांत को दोहराता है जैसे एक देश किसी दूसरे देश पर राज्य करने के लिये उपयुक्त नहीं होता को मानना चाहिये कि किसी दूसरे वर्ग पर राज्य करने के लिये एक वर्ग उपयुक्त नहीं होता”।
“लंबे होने के बजाय जीवन अच्छा होना चाहियें”।
“दिमाग की खेती मानव अस्तित्व का सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य होनी चाहिये”।
“मानव नश्वर होता है। वैसे ही विचार होते हैं। एक विचार को फैलाव की जरुरत होती है जिस तरह एक पौधे को पानी की जरुरत होती है। नहीं तो दोनों मुरझा और मर जायेंगे”।
“कोई एक जिसका दिमाग मुक्त नहीं यद्यपि जीवित है, मरने से बेहतर नहीं है”।
“बुद्ध की सीख शाश्वत है, लेकिन उसके बाद भी बुद्ध उसको अचूक घोषित नहीं करते हैं”।
“जैसे पानी की एक बूँद महासागर में मिलते ही अपनी पहचान खो देती है, व्यक्ति समाज में अपने होने का अस्तित्व नहीं खोता है जिसमें वो रहता है। व्यक्ति का जीवन स्वतंत्र होता है। वो अकेले समाज का विकास करने के लिये पैदा नहीं हुआ है, बल्कि अपने विकास के लिये हुआ है”।
“किसी एक के अस्तित्व का प्रमाण है दिमाग की स्वतंत्रता”।
“दिमाग की वास्तविकता वास्तविक स्वतंत्रता है”।
“मैं धर्म को पसंद करता हूँ जो आजादी, समता और भाईचारा सिखाता है”।
“इंसानों के लिये धर्म है ना कि धर्म के लिये इंसान”।
“धर्म मुख्यत: केवल एक सिद्धांत की विषयवस्तु है। ये नियम का मामला नहीं है। जिस पल ये नियमों से बिगड़ता है, एक धर्म होने के नाते ये समाप्त होता है, क्योंकि ये जिम्मेदारियों को मारता है जो सच्चे धार्मिक कानून का एक सार है”।
“व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिये एक वातावरण बनाना धर्म का बुनियादी विचार है”।
“अगर आप ध्यान से पढ़ेंगे, आप देखेंगे कि बौद्ध धर्म कारणों पर आधारित है। इसमें जन्मजात लचीलेपन का तत्व है, जो किसी दूसरे धर्म में नहीं पाया जाता है”।
“एक प्रसिद्ध व्यक्ति से अलग होता है एक महान आदमी जो समाज का नौकर बनने के लिये तैयार होता है”।
“हिन्दू धर्म में, विकास के लिये जमीर, कारण और स्वतंत्र विचार के पास को कोई अवसर नहीं है”।
“पति और पत्नि के बीच का रिश्ता एक सबसे घनिष्ठ मित्र की तरह होनी चाहिये”।
“इसांन के लिये किसी एक के पास कोई सम्मान या आदर नहीं हो सकता जो समाज सुधारक की जगह ले और उसके बाद उस पदवी के तार्किक परिणाम को देखने से मना कर दे, उसे अकेले ही खराब काम का अनुसरण करने दें”।
“एक कठोर वस्तु मिठाई नहीं बना सकता। किसी का भी स्वाद बदल सकता है। लेकिन जहर अमृत में नहीं बदल सकता”।
“एक सफल क्रांति के लिये इतना ही काफी नहीं है कि वहाँ असंतोष हो। जो चाहिये वो गंभीर है और न्याय की आस्था के द्वारा, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों की जरुरत और महत्व”।
“माना कि लंबे समय तक आपने सामाजिक आजादी प्राप्त नहीं की, जो भी स्वतंत्रता आपको कानून के द्वारा आपको उपलब्ध करायी जा रही है उसका आपके लिये कोई लाभ नहीं है”।